Saturday, September 5, 2015

तब जिन्दगी मुस्कुराती थी

थामे माँ की ऊँगली जब
नन्हे-नन्हे कदम बढ़ाती थी
सवारी बाबा के काँधे की जब
रंग-बिरंगे मेले दिखलाती थी
तब जिन्दगी मुस्कुराती थी
लौटूं पढ़कर पाठशाला से जब
और हाथो से अपने माँ खाना  खिलाती थी
संग बैठ बाबा के किताबो की पहेलियाँ जब
पल भर में हल हो जाती थी
तब जिंदगी मुस्कुराती थी
करती हंसी-ठिठोली शामे जब
दोस्तों की महफ़िलों में गुजर जाती थी
दूर देश की परियाँ नानी की कहानियों में जब
मिलने हमसे आती थी
तब जिंदगी मुस्कुराती थी
दिन-भर की भाग-दौड़ से थक रख सर माँ की गोद में जब
सुनती लोरियाँ बेफिक्र पल-भर में सो जाती थी
तब जिंदगी मुस्कुराती थी
तब ज़िन्दगी मुस्कुराती थी .

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